दिल गया, रौनक-ए-हयात गयी
ग़म गया, सारी कायनात गयी
दिल धड़कते ही फिर गयी वोह नज़र
लब तक आई न थी की बात गयी
दिन का क्या ज़िक्र, तीरह-बख्तों में
एक रात आई, एक रात गयी
उनके बहलाये भी न बहला दिल
रायगाँ सई-ए-इल्तफ़ात गयी
क़ैद-ए-हस्ती से कब नजात जिगर
मौत आयी अगर हयात गयी,.,.!!!
ग़म गया, सारी कायनात गयी
दिल धड़कते ही फिर गयी वोह नज़र
लब तक आई न थी की बात गयी
दिन का क्या ज़िक्र, तीरह-बख्तों में
एक रात आई, एक रात गयी
उनके बहलाये भी न बहला दिल
रायगाँ सई-ए-इल्तफ़ात गयी
क़ैद-ए-हस्ती से कब नजात जिगर
मौत आयी अगर हयात गयी,.,.!!!
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