Akbar Allahabadi [pronounced as 'Ilahabadi'] was born at Bara near Allahabad in UP in 1846. He began his career as a lawyer & later became a judge.
Akbar is known for his humourous poetry. The wit and satire were his style to comment on blind following of the British, in the wake of 1857. Akbar died in 1921. Read his famous ghazal:
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
ना-तजरुबे-कारी से वाएज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है !
उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे है बेगाना
मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खींचती है
ऐ शौक़ वही मय पी, ऐ होश ज़रा सो जा
मेहमान नज़र इस दम एक बर्क-ए-तजल्ली है
वां दिल में कि सदमे दो, याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है, अनवार-ए-इलाही से
हर सांस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा फितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफिर, अल्लाह की मर्जी है
अकबर इलाहाबादी
Now read in Roman transliteration:
Akbar Allahabadi
Akbar is known for his humourous poetry. The wit and satire were his style to comment on blind following of the British, in the wake of 1857. Akbar died in 1921. Read his famous ghazal:
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
ना-तजरुबे-कारी से वाएज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है !
उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे है बेगाना
मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खींचती है
ऐ शौक़ वही मय पी, ऐ होश ज़रा सो जा
मेहमान नज़र इस दम एक बर्क-ए-तजल्ली है
वां दिल में कि सदमे दो, याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है, अनवार-ए-इलाही से
हर सांस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा फितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफिर, अल्लाह की मर्जी है
अकबर इलाहाबादी
Now read in Roman transliteration:
hangaamaa hai kyuu.N barpaa thoRii sii jo pii lii hai
Daakaa to nahii.n Daalaa chorii to nahiiN kii hai
naa-tajrubekaarii se vaa'ez kii ye baateN haiN
is rang ko kyaa jaane puuchho to kabhii pii hai
us mai se nahiiN matalab dil jis se hai begaanaa
maqsuud hai us mai se dil hii me.n jo khi.nchatii hai
vaa.N dil me.n ki sadme do yaa.N jii me.n ke sab sah lo
un kaa bhii ajab dil hai meraa bhii ajab jii hai
har zarraa chamakataa hai anavaar-e-ilaahii se
har saa.Ns ye kahatii hai ham hai.n to Khudaa bhii hai
suuraj me.n lage dhabbaa fitarat ke karishme hai.n
but ham ko kahe kaafir allaah kii marzii hai
Akbar Allahabadi
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