Balraj Komal [1928-2013] was a leading Urdu poet, who is especially known for his modernist Nazms.
This verse* 'Akeli' describes the plight of a girl who has lost her entire family during the horrific killings and riots at the time of partition of India and Pakistan in 1947.
अजनबी, अपने क़दमों को रोको ज़रा
जानती हूँ तुम्हारे लिए ग़ैर हूँ
फिर भी ठहरो ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों भरी दास्ताँ
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
मेरी अम्मी नहीं, मेरे अब्बा नहीं
मेरी आपा नहीं, मेरे नन्हे से मासूम भैया नहीं
मेरी अस्मत की मग़रूर किरनें नहीं
वोह घरौंदा नहीं जिसके साये तले
लोरियों के तरन्नुम को सुनती रही,
फूल चुनती रही, गीत गाती रही, मुस्कुराती रही
आज कुछ भी नहीं
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
अजनबी अपने क़दमों को रोको ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों भरी दास्ताँ
साथ लेते चलो ये मुजस्सम फ़ुग़ाँ
मेरी अम्मी बनो
मेरे अब्बा बनो
मेरी आपा बनो
मेरे नन्हे से मासूम भय्या बनो
मेरी अस्मत की मगरूर किरनें बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो !!!
बलराज कोमल
Now read the Nazm in Roman English:
This verse* 'Akeli' describes the plight of a girl who has lost her entire family during the horrific killings and riots at the time of partition of India and Pakistan in 1947.
अजनबी, अपने क़दमों को रोको ज़रा
जानती हूँ तुम्हारे लिए ग़ैर हूँ
फिर भी ठहरो ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों भरी दास्ताँ
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
मेरी अम्मी नहीं, मेरे अब्बा नहीं
मेरी आपा नहीं, मेरे नन्हे से मासूम भैया नहीं
मेरी अस्मत की मग़रूर किरनें नहीं
वोह घरौंदा नहीं जिसके साये तले
लोरियों के तरन्नुम को सुनती रही,
फूल चुनती रही, गीत गाती रही, मुस्कुराती रही
आज कुछ भी नहीं
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
अजनबी अपने क़दमों को रोको ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों भरी दास्ताँ
साथ लेते चलो ये मुजस्सम फ़ुग़ाँ
मेरी अम्मी बनो
मेरे अब्बा बनो
मेरी आपा बनो
मेरे नन्हे से मासूम भय्या बनो
मेरी अस्मत की मगरूर किरनें बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो !!!
बलराज कोमल
Now read the Nazm in Roman English:
Ajnabi, apne qadmo.n ko roko zaraa
Jaantii huuN tumhare liye Ghair huuN
Phir bhii Thehro, zara
Sunte jaao, ye ashkoN bharii daastaaN
Saath lete chalo ye mujassam fuGhaaN
Aaj dunia meN meraa koii bhii nahiiN
Merii ammii nahiiiN
Mere abba nahiiN
Merii aapaa nahiiN
Mere nanhe se maasuum bhayya nahhiN
Merii asmat kii maGhrur kirneN nahiiN
Voh Gharaunda nahiiN jiske saaye tale
loriyoN ke tarannum ko sunti rahi
phool chunti rahii, geet gaati rahii,
muskuraati rahii
aaj kuchh bhii nahiiN….
Aaj duniya meN mera koii bhii nahiiN
Ajnabi apne qadmo.n ko roko zaraa
Sunte jaao ye ashkoN bhari daastaaN
Saath lete chalo ye mujassam fuGhaaN
Meri Ammi bano
Mere Abba bano
Merii aapa bano
Mere nanhe se maasoom bhaiya bano
Merii asmat kii maGhruur kirneN bano
Mere kuchh to bano
Mere kuchh to bano
Mere kuchh to bano!!
[*This is an excerpt courtesy TAEMEER NEWS. Read the entire Nazm in Urdu and news about Balraj Komal's demise at TAEMEER NEWS]
[Akeli is a powerful and emotional Nazm, which struck chord with an entire generation in post-Partition India and Pakistan. Lakhs were died in the communal violence on both sides of border and women were the worst sufferers, as they lost their families who were killed in the dance of death. Hence, it is an important poem in the literature of the era in the sub-continent.]
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