किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा
मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा
मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा
बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा .,.,.!!!
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Kisi ne jahar kaha hai , kisi ne shahad kaha
Koi samajh nahi pata hai jayka mera
Mai chahata tha ghazal aasman ho jaye
Magar jameen se chipka hai kafiya mera
Main pattharon ki tarah goonge saamyeen me tha
Mujhe sunate rahe lo waqya mera
Bulandiyon ke safar me dhyan aata hai
Jameen dekh rahi hogi rasta mera
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