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ऐ रात अब तु किसके आंसुवो में नहाती होगी...


मेरे शेरो में तुम्हे जरूर बगावत की बू आती होगी ,
बहकती हवा भी यही तुम्हे बार बार जताती  होगी...

मेरे लब्जो मैं कही उसका दर्द तो नही छुपा हैं कोई ,
मैं  सोचता हुं हर बार क्या खलीश उसको सताती होगी...

ऐ दिल तू सुन तो जरा वो मधुर गीतो कि झंकार ,
दुर कही किसी के खुशियो के लम्हो की बरात जाती होगी...

सुख गये आंसु मेरे दिल कि चांदणी के रोते रोते ,
ऐ रात अब तु किसके आंसुवो में नहाती होगी...

शब.ए. गम क्या, खुशियो की सौगात क्या, और बहारे क्या ,
ऎसें मौसमो में तनहाई भी तुझ को जलाती  होगी....

तेरे लब्जो को तो उनके ओठ पढ लेते हि होगे ,
अब आलम हैं के तेरी गजलें  ही तुझे चीढाती होगी.............

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