नतीजा एक सा निकला दिमाग और दिल का
कि दोनों हार गए तुम्हारे इश्क में.,.!!
डायरी के आखिर में नाम लिखा जो तुम्हारा
सभी पन्नो में कानाफूसी शुरू हो गयी !!
तारीखों मे बँध गया है अब इजहार-ए-मोहब्बत भी..
रोज़ प्यार जताने की अब किसी को फुरसत कहाँ..!!
जख्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख,
तुम हँसे तो मैं भी तेरे साथ हँस दी...!!
पता नही कब जाएगी तेरी लापरवाही की आदत....
पागल कुछ तो सम्भाल कर रखती मुझे भी खो दिया....!!
अपनी आँखों से निचोड़ूँगा किसी रोज़ उसे
करता रहता है बहुत मुझ से किनारा पानी,.,!!!
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहाँ मे क्या..!!
नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ,.,!!
खाली-सा पिंजरा लिए फिरता है...
एक नन्हा-सा परिंदा सड़कों पर!!
वो गली हमसे छूटती ही नहीं
क्या करें आस टूटती ही नहीं ,.,!!
एक परिंदा रोज टकराता है मेरे घर के
खिडकियों के शीशों से
जरूर इस इमारत की जगह कोई दरख्त रहा होगा !!
तुम भीगने का वादा तो करो जान...
बारिश मैं लेकर आऊंगा,.,!!
कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं,.,!!!
बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी,.,!!
मुझे इतना भी मत घुमा ए जिंदगी
मै शहर का शायर हूँ MRF का टायर नही,.,!!
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे
मैं समझता था मेरे यार समझते हैं मुझे,.,!!
दरवाजें बड़े करवाने है। मुझे अपने आशियाने के,.,
क्योकि कुछ दोस्तो का कद बड़ा हो गया है चार पैसे कमाने से,.,!!
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी ,.,!!
आइना देख के कहते हैं संवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मेरे मरने वाले,.,!!
कि दोनों हार गए तुम्हारे इश्क में.,.!!
डायरी के आखिर में नाम लिखा जो तुम्हारा
सभी पन्नो में कानाफूसी शुरू हो गयी !!
तारीखों मे बँध गया है अब इजहार-ए-मोहब्बत भी..
रोज़ प्यार जताने की अब किसी को फुरसत कहाँ..!!
जख्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख,
तुम हँसे तो मैं भी तेरे साथ हँस दी...!!
पता नही कब जाएगी तेरी लापरवाही की आदत....
पागल कुछ तो सम्भाल कर रखती मुझे भी खो दिया....!!
अपनी आँखों से निचोड़ूँगा किसी रोज़ उसे
करता रहता है बहुत मुझ से किनारा पानी,.,!!!
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहाँ मे क्या..!!
नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ,.,!!
खाली-सा पिंजरा लिए फिरता है...
एक नन्हा-सा परिंदा सड़कों पर!!
वो गली हमसे छूटती ही नहीं
क्या करें आस टूटती ही नहीं ,.,!!
एक परिंदा रोज टकराता है मेरे घर के
खिडकियों के शीशों से
जरूर इस इमारत की जगह कोई दरख्त रहा होगा !!
तुम भीगने का वादा तो करो जान...
बारिश मैं लेकर आऊंगा,.,!!
कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं,.,!!!
बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी,.,!!
मुझे इतना भी मत घुमा ए जिंदगी
मै शहर का शायर हूँ MRF का टायर नही,.,!!
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे
मैं समझता था मेरे यार समझते हैं मुझे,.,!!
दरवाजें बड़े करवाने है। मुझे अपने आशियाने के,.,
क्योकि कुछ दोस्तो का कद बड़ा हो गया है चार पैसे कमाने से,.,!!
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी ,.,!!
आइना देख के कहते हैं संवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मेरे मरने वाले,.,!!
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