अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे
बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको
याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे
उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे
हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे
अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग
जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे
अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे
वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में
और हम अपना कोई शेर सुना देते थे
घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल
रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे
हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे
तुम भी सच बोलने वालों के सज़ा देते थे,.,!!!
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Apne hone ka ham is tarah pata dete the
Khak mutthi me uthate the uda dete the
Besamar jaan ke ham kaat chuke hain jinko
Yaad aate hain bechare ke hawa dete the
Unki mehfil me wahi sach tha wo jo kuchh bhi kahe
Ham bhi goongon ki tarah haath utha dete the
Ab mere haal pe sharminda huye hain wo bujurg
Jo mujhe falne foolne ki dua dete the
Ab se pahle ke kaatil bahut achhe the
Katl se pahle wo pani to pila dete the
Wo hame kosta rhata tha jamane bhar me
Aur ham apna koi sher suna dete the
Ghar ki tameer me ham barso rahe pagal
Roj deewar uthate the , gira dete the
Ham bhi ab jhuth ki peshaani ko bosa denge
Tum bhi sach bolne walon ko saja dete the
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